लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

वात्सल्य

शैलेष ग्राम में रहने वाली अपनी बहिन सुलोचना के घर गया। उसे भूख लगी थी। उसने बहिन से कुछ खाने को मांगा।
सुलोचना हर्ष विभोर हुई, खेत से आई ताजी मटर छील-छील कर भाई को खिलाने लगी और खुद भी खाने लगी, परन्तु छिलके भाई को देती जाती और मटर स्वंय खाती जाती।
उसी समय उसका पति भी आ गया और देखकर बोला-“ये क्या कर रही हो?”
और स्वयं मटर छील कर पत्नि के भाई को देने लगा।
खाते हुए भाई बोला-“मटर तो मीठी है ही, परन्तु छिलके और भी अधिक मीठे थे।”
पति विवेकी था तुरन्त बोला-“मीठा तो वात्सल्य होता है। तुम्हारा कहना ठीक ही है।” पश्चात् घर की कुशलक्षेम पूछने लगा। थोड़ी देर बाद अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक दोनों ने भोजन किया।
थोड़ी देर विश्राम के बाद भाई ने अपने घर की राह पकड़ी।

7 Likes