लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

प्रेरणा

महिपाल नाम के स्वाध्यायी सेठ एक दिन तालाब के किनारे खड़े थे, तभी उन्होंने देखा कि एक मेंढक को सर्प ने आकर पकड़ लिया, फिर भी मृत्यु से बेखबर मेंढक, कीड़े खाने में मग्न रहा। जब तक उसका मुख बाहर रहा वह कीड़े खाता रहा। अन्त में सर्प द्वारा निगल लिया गया।
सेठ विचारने लगे कि मेंढक की भाँति सभी मोही जीवों की यही दशा है। जो अन्य जीवों को मरते हुए प्रत्यक्ष देख रहा है और स्वयं भी निरन्तर मृत्यु के समीप आता जा रहा है। तो भी विषय-कषायों में मग्न हुआ परिग्रह में ही उलझा रहता है। एक क्षण भी परलोक के सम्बन्ध में विचार नहीं करता और आत्महित में सावधान नहीं होता। इसीप्रकार दुर्लभ मनुष्य पर्याय का काल पूरा करके दुर्गति में चला जाता है।
सावधान !शीघ्र आत्महित कर लेना चाहिए, ऐसा विचार करते हुए, वे व्यापार, परिवार एवं लोक-व्यवहार से निवृत्ति लेकर चले गये एक पवित्र तीर्थस्थान, अपना हित करने के लिए।

4 Likes