लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

पुरुषार्थ

एक आलसी व्यक्ति रास्ते में लुटेरों के भय से भयभीत, श्मशान में बने एक मंदिर में पहुँचा और दीनतापूर्वक बोला - “हे प्रभो ! रक्षा करो।”

वहाँ रहने वाले एक देव को दया आ गई गयी उसने कहा - “मंदिर के किवाड़ लगा ले।”

व्यक्ति - “भय के कारण मेरी हिम्मत किवाड़ लगाने की नहीं हो रही।”
देव - “अच्छा कोई आये तो जोर से हुँकार देना।”
व्यक्ति - “मेरी जीह्वा में शक्ति नहीं रही। "
देव - “मात्र सामने देखते रहना।”
व्यक्ति - “मेरी आँखे ही नहीं खुल पा रही।”
देव - “अच्छा ! जाओ वेदी के पीछे छिप जाओ।”
व्यक्ति - “मेरे पैर आगे नहीं बढ़ रहे।”
देव - " (क्रोध सहित ) निकल जा यहाँ से, तुझ जैसे पुरुषार्थहीन की रक्षा नहीं हो सकती।”

सच है ! भगवान भी दुःख से छूटकर सुखी होने का मार्ग बताते हैं। समझ कर श्रद्धान एवं आचरण तो स्वयं के पुरुषार्थ से ही होगा।

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