कर्त्तव्यनिष्ठा
कर्त्तव्यनिष्ठा
बरसाती नदी के ऊपर रेलवे का एक पुराना पुल था। उसके समीप ही एक बुढ़िया अपने इकलौते बेटे के साथ रहती थी। वह बेटे को धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा के संस्कार कहानियों के माध्यम से स्वयं देती थी ; अतः उसका हृदय परोपकार एवं सेवा की भावना से भरा हुआ था।
एक रात्रि घनघोर वर्षा के कारण वह पुल टूट गया, उसकी आवाज से समझकर, लड़के ने वर्षा में भीगते हुए जाकर स्वयं टूटा पुल देखा। उसी समय गाड़ी आने का समय हो रहा था। उसने शीघ्र ही अपनी लाल कमीज को एक डण्डे में लगाया और एक बड़ी टॉर्च लेकर पुल से पहले ही लाइन के किनारे खड़े हो गया। दूर से ही ड्रायवर ने लाल रंग का इशारा देखकर गाड़ी रोकी , उतरकर पूछा - तब उसने ड्रायवर को टूटा पुल दिखाया।
ड्रायवर एवं यात्रियों ने उसे धन्यवाद एवं इनाम भी दिये, परन्तु वह तो इतने लोगों की रक्षा हो जाने से ही खुश था।
ड्रायवर ने समीप के स्टेशन पर सूचना भेजी, शीघ्र पुलिस एवं विभाग के अधिकार और समीप के गाँव के लोग आ गये। सभी ने यात्रियों की व्यवस्था की।
उसमें एक अधिकारी ने प्रसन्न होकर उस लड़के को पढ़ाने एवं रेलवे में योग्यतानुसार सर्विस देने की घोषणा कर ही दी। माँ सहित उसे स्टेशन के समीप ही एक आवास दिया गया, जिससे वह आगे की पढ़ाई भी कर सके।
सूचना पाकर शिक्षा-विभाग ने भी उसे छात्रवृत्ति प्रदान की और वह आगे रेलवे-विभाग में ही उच्च अधिकारी बना।