सम्मेद-शिखर जी, गुरुदेव श्री के प्रवचन तथा श्री सिद्धचक्र विधान की महिमा

जिस प्रकार, भूख तो सादा दाल-रोटी-सब्जी अथवा खिचड़ी से भी मिटा सकती है। परंतु, फिर भी मिष्टान्न इसलिए लिए जाते हैं क्योंकि उनमें विशेष रस आता है।

ठीक उसी प्रकार, सम्यग्दर्शन में तो हमारे नगर के मंदिर में विराजमान जिनबिम्ब भी निमित्त हो सकते हैं। परंतु “सम्मेद-शिखरजी अथवा किसी भी तीर्थक्षेत्र में विराजमान जिनबिम्ब” की अलग/विशेष महिमा होती है।

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इसी प्रकार, तत्त्वज्ञान, तत्त्वनिर्णय में तो हमारे नगर के विद्वान भी निमित्त बन सकते हैं। परंतु, “गुरुदेव के प्रवचन” की अलग महिमा है।

इसी प्रकार, भगवान की भक्ति में तो नित्य-नियम पूजन अथवा अन्य कवियों द्वारा रचित विधान भी निमित्त हो सकते हैं। परन्तु “सिद्धचक्र मंडल विधान” की अलग महिमा है।

  • पं.अभय कुमार जी शास्त्री, देवलाली
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