श्रीमुनि राजत समता संग | shri muni rajat samta sang

श्रीमुनि राजत समता संग । कायोत्सर्ग समाहित अंग ।।टेक ।।

करतैं नहिं कछु कारज तातैं, आलम्बित भुज कीन अभंग।
गमन काज कछु हू नहिं तातैं, गति तजि छाकें निज रसरंग ।।१।।

लोचनतैं लखिवौ कछु नाहीं, तातैं नासा दृग अचलंग।
सुनिवे जोग रह्यो कछु नाहीं, तातैं प्राप्त इकंत सुचंग ।।२।।

तहँ मध्यान्ह माहिं निज ऊपर, आयो उग्र प्रताप पतंग।
कैधौं ज्ञान पवनबल प्रज्वलित, ध्यानानलसौं उछलि फुलिंग ।।३।।

चित निराकुल अतुल उठत जहँ, परमानन्द पियूष तरंग।
`भागचन्द’ ऐसे श्रीगुरुपद, वंदत मिलत स्वपद उत्तंग ।।४।।

Artist : Pt. Shri Bhagchand Ji

Singer: @Samay

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