नाम बनारस नगरी में जन्मे पारसनाथ।
धनि धनि वामा मात है अश्वसेन के लाल ।।
पारस नाथ जी सम्मेदाचाल जाएं,कि अब बारी हमरी है।
जन्म लियो श्री पारस स्वामि, जन्म मरण मिटाने,
राज तजो और करी तपस्या, मुक्ति पूरी को पाने।
हम भी पावे मोक्ष का मार्ग, की अब वारी हमरी है।।
श्रावण शुक्ला सप्तमी आई मुक्ति पुरी प्रभु जाएं,
भव्य जीव के निमित्त कारण, शाश्वत सुख को पाने।
श्री जी को हम माथ नाय, की अब बारी हमरी है ।।
हम मिल प्रभू को शीश नवावें, उनके ही गुण गाएं
प्रभु सम निज का रूप निहारे, उन सम ही वन जाएं।
आत्मा ही है परमात्मा, की अब बारी हमरी है।।