पंच(पञ्च) परम परमेष्ठी देखे | Panch Param Parmeshthi

पंच(पञ्च) परम परमेष्ठी देखे…
हृदय हर्षित होता है, आनंद उल्लसित होता है।
होऽऽऽ सम्यग्दर्शन होता है ।।टेक।।
दर्श-ज्ञान-सुख वीर्य स्वरूपी, गुण अनंत के धारी हैं।
जग को मुक्तिमार्ग बताते, निज चैतन्य विहारी हैं।।
मोक्षमार्ग के नेता देखे, विश्व तत्त्व के ज्ञाता देखे ।। हृदय…।।1।।

द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, जो सिद्धालय के वासी हैं।
आतम को प्रतिबिम्बित करते, अजर-अमर अविनाशी हैं।।
शाश्वत सुख के भोगी देखे, योगरहित निजयोगी देखे ।।हृदय…।।2।।

साधु संघ के अनुशासक जो, धर्मतीर्थ के नायक हैं।
निज-पर के हितकारी गुरुवर, देवधर्म परिचायक हैं।।
गुण छत्तीस सुपालक देखे, मुक्तिमार्ग संचालक देखे ।।हृदय…।।3।।

जिनवाणी को हृदयंगम कर, शुद्धातम रस पीते हैं।
द्वादशांग के धारी मुनिवर, ज्ञानानंद में जीते हैं।।
द्रव्य-भाव श्रुतधारी देखे, बीस पाँच गुणधारी देखे।।हृदय…।।4।।

निज स्वभाव साधनरत साधु, परम दिगम्बर वनवासी।
सहज शुद्ध चैतन्यराजमय, निज परिणति के अभिलाषी।।
चलते-फिरते सिद्धप्रभु देखे, बीस-आठ गुणमय विभु देखे।। हृदय…।।5।।

Artist - पं. अभयकुमार जी, देवलाली

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यह मेरी सबसे प्रिय भक्तियों में से है!

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