निर्ग्रथों का मार्ग | Nirgranthon Ka Marg

निर्ग्रथों का मार्ग हमको प्राणों से भी प्यारा है|
दिगम्बर वेश न्यारा है......निर्ग्रथों का मार्गं.......॥

शुद्धात्मा में ही, जब लीन होने को, किसी का मन मचलता है|
तीन कषायों का, तब राग परिणति से सहज ही टलता है||
वस्त्र का धागा…. वस्त्र का धागा नहीं फिर उसने तन पर धारा है || दिग.॥(1)

पंच इंद्रिय का, निस्तार नहीं जिसमें, वह देह ही परिग्रह है,
तन में नहीं तन्मय, है दृष्टि में चिन्मय, शुद्धात्मा ही गृह है,
पर्यायों से पार..... पर्यायों से पार त्रिकाली ध्रुव का सदा सहारा है ॥दिग.॥(2)

मूलगुण पालन, जिनका सहज जीवन, निरंतर स्वसंवेदन
एक ध्रुव सामान्य में ही सदा रमते, रत्नत्रय आभूषण,
निर्विकल्प अनुभव...... निर्विकल्प अनुभव से ही जिनने निज को श्रृंगारा है ॥दिग.||(3)

आनंद के झरने, झरते प्रदेशों से, ध्यान जब धरते हैं,
मोह रिपु क्षण में, तब भस्म हो जाता, श्रेणी जब चढ़ते हैं,
अंतर्मुहूर्त मे... अंतर्मुहूर्त में ही जिनने अनन्त चतुष्टय धारा है ॥दिग.॥(4)

Artist - पं. अभय कुमार जी शास्त्री देवलाली

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