What are the names of 72 kala? And where can one find the names of 72 kala in Jinaagam?
Can you please give link to the book?
कला बहत्तर पुरुष की, तामें दो सरदार |
एक जीव की जीविका, दूजा जीव उद्धार ||
अठारह प्रकार के अक्षर लिखने का ज्ञान होनेमय अष्टादश- अक्षर कला |
कृपया इसका भाव स्पष्ट करें |
@Sulabh @jinesh @Sarvarth.Jain @Aniteshj
Not sure but this might be a possibility -
संस्कृत में एक एक स्वर के १८ भेद होते है -
- ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत (3)
- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित (x 3)
- अनुनासिक और अननुनासिक (x 2)
Check this link once.
May be @aman_jain or @paras_jain can help…
स्वर उच्चारण काल के आधार पर ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत का भेद बनता है। छोटा “अ” ह्रस्व कहलाता है, बड़ा “आ” दीर्घ कहलाता है एवं “अ३” प्लुत कहलाता है। इसका प्रयोग गयान आदि कला में दीर्घ काल तक स्वर उच्चारण रूप में होता है।इन तीनो भेदो को हम तीन प्रकार से बोलते है - उच्च स्वर में (उदात्त), नीच स्वर में(अनुदात्त) और समाहार रूप से (स्वरित)। इस प्रकार ये कुल ३*३= ९ भेद हो जाते हैं।
इन ९ भेदो को अनुनासिक (अर्थात नाक के माध्यम से उच्चारित होने वाले या जिनके उच्चारण में ‘न’ की ध्वनि सुने) एवं अनानुनासिक (मूल रूप ) के भेदों में बाटकर १८ प्रकार का स्वर निर्माण होता है।
ये भेद मात्र ‘अ’ स्वर के नही अपितु सभी स्वरों में बनते हैं। क्षेत्रगत उच्चारण विभिन्ता इन १८ प्रकार के स्वरों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। जैसे बुंदेलखंडी में ‘अ’ का उच्चरण ‘अं’ होता है। कही- कही अ को ऐ के रूप में बोलते है आदि।
इस विषय को विशेष जानने के लिए पाणनि द्वारा रचित कोमदी का संज्ञा प्रकरण पढ़ना चाहिए।