How can Arihant Bhagwan live without food?

संसार अवस्था में जब तक सयोग अवस्था विद्धमान है तब तक प्रति समय अनंत पुद्गल परमाणुओ का ग्रहण होता ही रहता है (इसकी संख्या को समयप्रबद्ध कहा गया है जिसका प्रमाण ‘सिद्ध राशि का अनंतवा भाग और अभव्य राशि का अनंत गुना’ है)। गुणस्थानो की परिपाटी में देखने पर १-१३वे गुणस्थान तक ऐसा होता है। इन परमाणुओ के ग्रहण होने से जीवों को यहाँ आहारक कहा गया है। मरण पश्चात जब तक (विग्रह गति में १-३ समय मात्र) नया शरीर धारण नहीं किया (ऋजू गति से गमन करने वालों को छोड़कर) मात्र उन १-३ समयों में ही जीव आहार वर्गणाओ के सम्बन्ध में अनाहारक रहता है, लेकिन वहाँ भी कर्म परमाणुओ का तो निरंतर ग्रहण होता ही है। उन पुद्गल परमाणुओ के ग्रहण की अपेक्षा से आहार की सिद्धि होती है। (इसके विशेष नियमो का करणानुयोग के ग्रंथो से ही अध्ययन अच्छा रहेगा। सामान्यता से समझने के लिए तत्वार्थ सूत्र जी का अध्याय २, सूत्र २७-३० देखिए)।

इसीलिए यहाँ पर केवली भगवान के भी एक समय की स्थिति वाला इर्यापथ आस्रव की अपेक्षा कर्माहार को स्वीकार किया है और कवालाहार का निषेध किया गया है।

मुझे नहीं लगता की ऐसी कोई बात अरिहंत परमात्मा के परमौदारिक शरीर के सम्बन्ध में लागू होती है। आपका कहा हुआ मान लेने पर कई दोष उत्पन्न होंगे। जैसे कि शरीर में stored ऊर्जा का इस्तमाल करने के लिए इस सम्बंधी विकल्प का राग भाव चाहिए, और ऐसे परिणमन के लिए पर द्रव्य का कर्तापना भी चाहिए, सो दोनो ही बात वस्तु स्थिति से विपरीत है। शरीर की सहज/स्वयमेव ही आयु कर्म और अन्य अघाती कर्म के उदय प्रमाण स्थिति रहती है।

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