मोह की दीवार | Moh ki Diwaar

मोह की दीवार न तोड़ी, बाहर से सब छोड़ दिया।

इक अनजाने मोक्ष-पथिक ने, जिनवर से मुँह मोड़ लिया ।। टेक ।।

वह राही बहते नाले के, गहरे पानी से निकला,

भूल गया बाहर आने को, लगा श्वांस खाने पगला ।

देख सुनहली मछली जल में, अब उसका है मन बहला,

तेज बहाव के आने पर वह, फिर से जल में दौड़ लिया । इक … ।। १।।

इसी तरह यह जीव खा रहा, गोते इस भवसागर में,

नहीं मिल सकी राह अभी तक, थोड़े जीवन - गागर में ।

दीप जला ले सुख का भैया, अपने ही मन-मन्दिर में,

छोड़ विषय-भोगों को अब तो, इनका मधू निचोड़ लिया । इक … ।। २ ।।

रचयिता:- पं. रमेशचंद जी

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