भले रूठ जाये(बस एक वीतरागी को) | Bhale Ruth Jaye (Bas ek Veetragi ko)

भले रूठ जाये ये सारा जमाना,
नहीं रागियों की शरण मुझको जाना॥
बस एक वीतरागी को मस्तक झुकाना-२
ये श्रद्धान मेरा है मेरु समाना, नहीं रागियों… ॥ टेक॥

मेरे ज्ञान और ध्यान में बस तुम्हीं हो,
अटल और श्रद्धान में बस तुम्हीं हो।
नहीं लाज गौरव, ना भय मुझको आना ॥१॥ नहीं रागियों…

तुम्हीं से मुझे मुक्तिमार्ग मिला है,
रत्नत्रय का सुन्दर चमन ये खिला है।
ना तीर्थंकरों के, कुल को लजाना॥२॥ नहीं रागियों…

मैं हूँ मात्र ज्ञायक ये अनुभव ने जाना,
तिहुँ लोक में बस उपादेय माना।
ये गुरुओं का ऋण है, मुझे ही चुकाना ॥३॥ नहीं रागियों…

है आदर्श अकलंक गुरुवर हमारे,
है निकलंक आचार्य प्राणों से प्यारे।
धर्म के लिये, जिनने मस्तक कटाया ॥४॥ नहीं रागियों…

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