अबके ऐसी दिवाली मनाऊँ, कबहूँ फेर न दुःखड़ा पाऊँ।।टेक।।
आन कुदेव कुरीति छाँड़ के, श्री महावीर चितारू।
राग-द्वेष का मैल जलाकर, उज्जवल ज्योति जगाऊँ।।
अपनी मुक्ति-तिया हर्षाऊँ, अबके ऐसी दिवाली मनाऊँ।।१।।
निज अनुभूति महालक्ष्मी का वास हृदय करवाऊँ।
निजगुण लाभ दोष टोटे का, लेखा ठीक लगाऊँ।।
जासो फेर न टोटा पाऊँ, अबके ऐसी दिवाली मनाऊँ।।२।।
ज्ञान-रतन के दीप में, तप का तेल पवित्र भराऊँ।
अनुभव ज्योति जगा के , मिथ्या अन्धकार बिनसाऊँ।।
जासों शिव की गैल निहारें, अबके ऐसी दिवाली मनाऊँ।।३।।
अष्ट करम का फोड़ फटाका, विजयी जिन कहलाऊँ।
शुद्ध बुद्ध सुखकन्द मनोहर,शील स्वभाव लखाऊँ।।
जासों शिवगोरी बिलसाऊँ, अबके ऐसी दिवाली मनाऊँ।।४।।