बाल भावना । ६. सम्यक् ज्ञान के आठ अंग

६. सम्यक् ज्ञान के आठ अंग

अक्षर शुद्ध उच्चारो, अर्थ भी शुद्ध विचारो ।

उभयशुद्धि सुखकारी, कालाध्ययन हितकारी ।।1।।

अवधारण उपधान, करो योग्य बहुमान ।

नाम गुरु न छिपाओ, योग्य विनय प्रगटाओ ।।2।।

आठ अंग नित भजना, संशयादि को तजना ।

पाओ सम्यग्ज्ञान, तब ही हो कल्याण ।।3।।

रचयिता-: बा.ब्र.श्री रवींद्र जी ‘आत्मन्’

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