(तर्ज - ऊँचे-ऊँचे शिखरों वाला है ये…)
अद्भुत प्रभुता वाले हैं, ये प्रभुवर हमारे।
प्रभुवर हमारे, ये प्रभुवर हमारे । टेक।।
ज्ञान में झलके लोकालोक, चित्स्वरूप अपना अवलोक।
निर्विकल्पता धारे हैं, ये प्रभुवर हमारे ।।1।।
अनुपम वैभव समवशरण के, शीश झुके जहँ शत इन्द्रों के।
वीतरागता धारे हैं, ये प्रभुवर हमारे ।।2।।
घाति कर्म बिन श्री अरहन्त, रहें सदा जग में जयवन्त।
केवल जाननहारे हैं, ये प्रभुवर हमारे ।।3।।
अहो परम उपकार तुम्हारा, जाना अपना जाननहारा ।
परमानन्द विस्तारे हैं, ये प्रभुवर हमारे ।4।।
स्वामिन् ! चरणों में शीश नवावें, सम्यक् बोधि समाधि पावें।
मार्ग दिखावन हारे हैं, ये प्रभुवर हमारे ।।5।।
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी आत्मन्